24 November 2017

2001 - 2005 दिल मोहब्बत प्यार साँस अन्दाज सिद्दत ख़्वाहिश दर्द हाल तलब ज़ख़्म नज़र बिछड़ धडक शायरी


2001
कहनेकी तलब नहीं कुछ...
बस,
तुम्हारे आस-पास होनेकी ख़्वाहिश हैं...

2002
राज़-ए-मोहब्बतमें,
अज़ब हाल हुआ हैं अपना ...
न ज़ख़्म नज़र आता हैं,
ना दर्द सहा जाता नज़र हैं . . .

2003
खुदको मेरे दिलमें ही
छोड़ गए साहिब ...
तुम्हे तो ठीकसे
बिछड़ना भी नहीं आता !!!

2004
"जा तू भी उनके सीनेमें ,
जाकर धडक ऐ दिल,
उनके बगैर जी रहे हैं ,
तो तेरे बगैर भी जी लेंगे !!"

2005
मत पूछो की उसके प्यार करनेका,
अन्दाज कैसा था...?
उसने इतनी सिद्दतसे सीने लगाया की,
साँस भी रुक गयी और,
जान भी ना गई !!!

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