10 November 2017

1936 - 1940 दिल दर्द आईने निगाह खंज़र शाबासी सख़्त रिश्ते तमीज़से नफरत बाजार मजा अधूरा सपना रौशन फर्क शायरी


1936
आईनेमें कल अपनी पीठसे,
निगाह जा मिली...
अनगिनत खंज़र और,
थोड़ीसी शाबासी पड़ी मिली...

1937
सख़्त हाथोंसे भी,
छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ,
रिश्ते ज़ोरसे नहीं,
तमीज़से थामे जाते हैं....||

1938
नफरतोंके बाजारमें,
जीनेका अलग ही मजा हैं;
लोग "रूलाना" नहीं छोडते,
और जिंदादिल "हसना" नहीं छोडते ।

1939
हर सपना ख़ुशी पानेके लिए पूरा नहीं होता;
कोई किसीके बिना अधूरा नहीं होता;
जो चाँद रौशन करता हैं रातभरको;
हर रात वो भी पूरा नहीं होता।

1940
लोगोंमें और हममें,
बस इतनासा फर्क हैं...
की लोग दिलको दर्द देते हैं,
और हम दर्द देनेवालेको दिल देते हैं !

No comments:

Post a Comment