13 November 2017

1946 - 1950 ज़िन्दगी किनारा राह बात ख्वाहिशें हद बेवफा हीरा वक्त ज़ख्म किताब कहानी पहचान शायरी


1946
"नदी जब किनारा छोड़ती हैं,
तो राहमें चट्टान तक तोड़ देती हैं,
बात छोटीसी अगर चुभ जाये दिलमें,
ज़िन्दगीके रास्तोंको भी मोड़ देती हैं...!"

1947
ख्वाहिशें भी कितनी बेवफा होती हैं...
पुरी होते ही बदल जाती हैं.......

1948
"नायाब हीरा" बनाया हैं,
रबने हर किसीको...
पर "चमकता" वहीं हैं जो,
"तराशने" की हदसे "गुजरता" हैं...

1949
लोग कहते हैं कि,
वक्त हर ज़ख्मको भर देता हैं...
पर किताबोंपर धूल जमनेसे,
कहानी बदल नहीं जाती...

1950
कर्मसे ही इंसानको ''पहचान'' मिलती हैं...
नामका क्या हैं ?
नाम तो लाखों लोगोंके
एक जैसे होते हैं...

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