28 November 2017

2016 - 2020 मोहब्बत याद आँखें दस्तक नज़र दरवाजा हिचकि मुखबिर पहचान खुशबु काबिल शायरी


2016
जिसको आज मुझमें,
हज़ारों गलतियाँ नज़र आती हैं...
कभी उसीने कहाँ था...
“आप जैसे भी हो, मेरे हो.......”

2017
जब भी उनकी गलीसे गुज़रता हूँ...
मेरी आँखें एक दस्तक दे देती हैं...
दुःख ये नहीं कि वो दरवाजा बंद कर देते हैं.....
खुशी ये हैं कि वो मुझे अब भी पहचान लेते हैं.......

2018
मत भेजिए हिचकियोंको मुखबिर बनाकर,
औरभी काम हैं तुम्हे याद करनेके सिवा.......

2019
जिस फूलोंकी परवरिश,
हमने अपनी मोहब्बतसे की.....
जब वो खुशबुके काबिल हुए,
तो औरोंके लिए महकने लगे.......

2020
वो जो कहते थे,
तू ना मिला तो मर जाएँगे,
वो अब भी ज़िंदा हैं...
यही बात किसी औरसे कहनेके लिए...।

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