6 November 2017

1916 - 1920 दिल नज़र इजाज़त रूह बारिश चाहत मौसम हुनर इन्तजार बरसात आँख हद आईना शायरी


1916
मेरी नज़रने उन्हें सिर्फ़,
दिलतक आनेकी इजाज़त दी थी...
मेरी रूहमें समा जानेका हुनर,
उनका अपना था . . . !

1917
बारिशके बाद,
रात आईनासी थी...!!
एक पैर पानीमें पड़ा, 
और चाँद हिल गया....!!!

1918
इन सूनी आँखोंको,
इन्तजार था जिसका,
बरसातके मौसममें भी,
आया नहीं जवाब उसका...

1919
चाहतकी कोई हद नहीं होती,
सारी उम्र भी बीत जाए...
मोहब्बत कभी कम नहीं होती...!!

1920
मेरी महफिलमें यूँ तो,
बड़ी भीड़ जमा थी...
फिर ऐसा हुआ साहब,
मैं सच बोलता गया, लोग उठते गए...

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