2 November 2017

1906 - 1910 दिल वक़्त सोच इश्क सुकून इबादत नज़र जर्रे मसला जालिम दुनियाँ शायरी


1906
उस वक़्त तो खुदा भी,
सोचमें पड़ गया;
जब मैने इश्क़ और सुकून,
दोनों साथमें माँग लिए...

1907
मुस्कराते फूलोंमें न दिखा, 
तो पत्थरकी मूरतमें क्या दिखेगा।
इबादतकी नज़रसे देख,
जर्रेजर्रेमें ख़ुदा दिखेगा....!!!

1908
मसला यह भी हैं...
इस जालिम दुनियाँका...
कोई अगर अच्छा भी हैं...
तो अच्छा क्यों हैं....... ?

1909
नवाबी तो हमारे खुनमें हैं,
पर पता नहीं...
ये दिल कैसे.......
तेरी गुलामी करना सीख गया.......

1910
ख़ुश हूँ आज उनकी यादोंको,
याद करके ऐ खुदा...
उन्हें भी ख़ुश रखना जिन्हें,
कभी मेरी ख़ुशी प्यारी थी...

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