1911
बेशक हम आशिक हैं,
लाख दवा-ए-होश करते हैं,
पर उनका क्या करें...
जो नजरोंसे मदहोश करते हैं !
1912
किसीके चाहनेसे,
न हुसन मिलता न ही किस्मत,
यह तो कर्मोंकी खेती हैं
जो बिजोगे सो पाओगे ।
1913
उलझनों और कश्मकशमें,
उम्मीदकी ढाल लिए बैठा हूँ ।
ए जिंदगी, तेरी हर चालके लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ ।।
लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी
आँख - मिचोलीका ।
मिलेगी कामयाबी,
हौसला कमालका लिए बैठा हूँ ।।
चल मान लिया,
दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक़।
गिरेबानमें अपने,
ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ ।।
ये गहराईयाँ, ये लहरें,
ये तूफां, तुम्हे मुबारक।
मुझे क्या फ़िक्र,
मैं कश्तीयाँ और दोस्त...
बेमिसाल लिए बैठा हूँ ।।
1914
हद से गुजर गए हम,
आपको चाहनेमें...
आप ही उलझे रहे...
हमको आज़मानेमें.......
1915
मेरी रूहमें न समाती तो भूल जाता तुम्हे,
तुम इतना पास न आती तो भूल जाता तुम्हे,
यह कहते हुए मेरा ताल्लुक नहीं तुमसे कोई,
आँखोंमें आँसू न आते तो भूल जाता तुम्हे ।
No comments:
Post a Comment