1901
इश्कमें ना हुए बदनाम,
तो क्या इश्क किया...!
चर्चे जो ना हुए सरेआम,
तो क्या इश्क किया...!!
1902
सोचता हूँ तेरी तारीफमें कुछ लिखुं !
फिर खयाल आया की,
कहीं पढने वाला भी तेरा,
दिवाना ना हो जाए...!!!
1903
कलतक उड़ती थी जो मुँह तक,
आज पैरसे लपट गई...
चंद बूँदे क्या बरसी बरसात कि,
धूल कि फितरत ही बदल गई...!
1904
कितने बरसोंका,
सफर युँही ख़ाक हुआ;
जब उसने कहा ...,
बोलो, कैसे आना हुआ...?
1905
ज़रासी रंजिशपर,
ना छोड़, किसी अपनेका दामन...
ज़िंदगी बीत जाती हैं,
अपनोको अपना बनानेमें...!
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