2551
लफ्ज़ उनक़े फ़िर,
क़रवटें ले रहें हैं...
शक़ हैं मुझे,
मेरी फ़िर तबाहीक़ा...
2552
वैसे तो ठीक
रहूँगा,
मैं उससे बिछडके...
बस दिलकी
सोचता हूँ,
धडकना
छोड न दे.......
ताबीज़ ज़ैसा था,
वो शख़्स.....
ग़ले लग़ते ही,
सुक़ूँन मिलता था...!
2554
तेरा हुआ ज़िक्र
तो...
हम तेरे सजदेमें झुक गये,
अब क्या फर्क
पड़ता हैं...
मंदिरमें झुक
गये,
या मस्जिदमें झुक
गये !!!
2555
वो जिसके लिए हमने,
सारी हदें तोड
दी,
आज उसने कह
दिया,
अपनी हदमें रहा करो...