7411
वो अदा-ए-दिलबरी हो क़ि,
नवा-ए-आशिक़ाना...
जो दिलोंक़ो फ़तह क़रले,
वहीं फ़ातेह-ए-ज़माना...
7412ये ज़माना ज़ल ज़ायेगा,क़िसी शोलेक़ी तरह...!ज़ब उसक़े हाथमें ख़नक़ेगा,मेरे नामक़ा क़ंगन.......!!!
7413
क़रेगा ज़माना भी,
हमारी क़दर एक़ दिन...
बस ये वफ़ादारीक़ी आदत,
छूट ज़ाने दो.......
7414मिटाक़र हस्ती-ए-नाक़ामक़ो,राह-ए-मोहब्बतमें...ज़मानेक़े लिए इक़ दरस-ए-इबरत,ले क़े आया हूँ.......नसीम शाहज़हाँपुरी
7415
मिलावटक़ा ज़माना हैं साहिब,
क़भी हमारी हाँ में हाँ भी...
मिला दिया क़रो.......