5496
हमारी उम्रही कहाँ थी,
इश्क़ फरमानेकी...
दिलको तूने
छू लिया,
और हम जवां
हो गए...!
5497
ख़तरेके निशानसे ऊपर,
बह रहा हैं
उम्रका पानी;
वक़्तकी बरसात है कि,
थमनेका नामही नहीं ले
रही।
5498
ख्वाहिशें
कुछ कुछ,
अधुरी रही...
पहले उम्र नही
थी,
अब उम्र नही
रही...
5499
जलता रहा सारी
उम्र,
अधूरे अश्क़ लेकर...
बस तुझे मेरे
इश्क़का,
एहसास हो तो
पूरा हो जाऊं...
5500
किस उम्रमें आकर मिले
हो,
तुम हमसे सनम...
जब हाथोंकी मेहंदी,
बालोंमें
लग रही हैं...