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असीरोंके हकमें,
यही फैसला हैं;
कफसको समझते रहें,
आशियाना ll
दिल शाहजहांपुरी
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खलिशने दिलको मेरे,
कुछ मजा दिया
ऐसा...
कि जमा करता
हूँ खार,
आशियानोंके
लिये.......
त्रिलोकचन्द
महरूम
तुम्हारे साथ मरेंगे,
जो हमसे कहते थे...
उठाके ले गए गुलशनसे,
आशियानेको.......
महशर हमरोही
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न खतरा हैं
खिजाँका,
न उम्मीदे–बहारे–गुल...
नशेमनमें
कफस जैसी,
फरागत हो नहीं
सकती...
अलम मुजफ्फरनगरी
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अदू सैयाद-ओ-गुलचीं,
क्यों हुए मेरे नशेमनके...
ये तिनके भी हैं इस काबिल,
जिन्हें बर्बाद करते हैं.......
साकिब लखनवी