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नाज़ उधर दिलक़ो,
उड़ा लेनेक़ी घातोंमें रहा...
मैं इधर चश्म-ए-सुख़न-ग़ो,
तिरी बातोंमें रहा.......
नातिक़ ग़ुलावठी
9287सुख़न-ए-सख़्तसे,दिल पहले ही तुम तोड़ चुक़े...lअब अग़र बात बनाओ भी,तो क़्या होता हैं.......?लाला माधव राम ज़ौहर
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मश्क़-ए-सुख़नमें,
दिल भी हमेशासे हैं शरीक़ l
लेक़िन हैं इसमें,
क़ाम ज़ियादा दिमाग़क़ा ll
एज़ाज़ ग़ुल
9289अहल-ए-दिलक़े,दरमियाँ थे मीर तुम...अब सुख़न हैं,शोबदा-क़ारोंक़े बीच...!उबैदुल्लाह अलीम
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क़्या क़ोई दिल लग़ाक़े,
क़हे शेर ऐ क़लक़...
नाक़द्री-ए-सुख़नसे हैं,
अहल-ए-सुख़न उदास.......
असद अली ख़ान क़लक़