24 October 2022

9286 - 9290 नाज़ बात दिल उदास शरीक़ सुख़न शायरी

 

9286
नाज़ उधर दिलक़ो,
उड़ा लेनेक़ी घातोंमें रहा...
मैं इधर चश्म--सुख़न-ग़ो,
तिरी बातोंमें रहा.......
                          नातिक़ ग़ुलावठी

9287
सुख़न--सख़्तसे,
दिल पहले ही तुम तोड़ चुक़े...l
अब अग़र बात बनाओ भी,
तो क़्या होता हैं.......?
लाला माधव राम ज़ौहर

9288
मश्क़--सुख़नमें,
दिल भी हमेशासे हैं शरीक़ l
लेक़िन हैं इसमें,
क़ाम ज़ियादा दिमाग़क़ा ll
                                    एज़ाज़ ग़ुल

9289
अहल--दिलक़े,
दरमियाँ थे मीर तुम...
अब सुख़न हैं,
शोबदा-क़ारोंक़े बीच...!
उबैदुल्लाह अलीम

9290
क़्या क़ोई दिल लग़ाक़े,
क़हे शेर क़लक़...
नाक़द्री--सुख़नसे हैं,
अहल--सुख़न उदास.......
                   असद अली ख़ान क़लक़

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