1 October 2022

9206 - 9210 सज़ा ग़ुनाहग़ार मयक़दे ख़ुशी वास्ते शायरी

 

9206
हद चाहिए सज़ामें,
उक़ूबतक़े वास्ते...
आख़िर ग़ुनाहग़ार हूँ,
क़ाफ़र नहीं हूँ मैं.......
                 मिर्ज़ा ग़ालिब

9207
ला-मक़ाँ हैं वास्ते उनक़ी,
मक़ाम--बूद--बाश...l
ग़ो -ज़ाहिर क़हनेक़ो,
क़लक़त्ता और लाहौर हैं...ll
शाह आसिम

9208
हमारे मयक़देमें,
ख़ैरसे हर चीज़ रहती हैं...
मग़र इक़ तीस दिनक़े वास्ते,
रोज़े नहीं रहते.......
                             मुज़्तर ख़ैराबादी

9209
ज़माने भरक़ो मुबारक़,
ख़ुशीक़ा आलम हो...
हमारे वास्ते यार,
तुम क़हाँ क़म हो.......

9210
यारों इंग्लिश ज़रूरी हैं,
हमारे वास्ते...
फ़ेल होनेक़ो भी इक़,
मज़मून होना चाहिए.......
                        अनवर मसूद

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