9226
असीरान-ए-क़फ़सक़ो,
वास्ता क़्या इन झमेलोंसे ;
चमनमें क़ब ख़िज़ाँ आई,
चमनमें क़ब बहार आई ll
नूह नारवी
9227नई सहरक़े हसीन सूरज़,तुझे ग़रीबोंसे वास्ता क़्या...ज़हाँ उज़ाला हैं सीम-ओ-ज़रक़ा,वहीं तिरी रौशनी मिलेग़ी.......अबुल मुज़ाहिद ज़ाहिद
9528
क़ैसे क़हें क़ि तुझक़ो भी,
हमसे हैं वास्ता क़ोई l
तूने तो हमसे आज़ तक़,
क़ोई ग़िला नहीं क़िया ll
ज़ौन एलिया
9229बुरा भला वास्ता बहर-तौर,उससे क़ुछ देर तो रहा हैं...क़हीं सर-ए-राह सामना हो तो,इतनी शिद्दतसे मुँह न मोड़ूँ.......ख़ालिद इक़बाल यासिर
9230
ज़िग़र वालोंक़ो डरसे,
क़ोई वास्ता नहीं होता l
हम वहाँ भी क़दम रख़ते हैं,
ज़हाँ क़ोई रास्ता नहीं होता ll
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