16 October 2022

9251 - 9255 हुस्न मज़नूँ इश्क़ हौसला निग़ाह नज़र वुसअत शायरी

 

9251
हुस्नक़ो वुसअतें जो दीं,
इश्क़क़ो हौसला दिया...
जो मिले, मिट सक़े,
वो मुझे मुद्दआ दिया.......

9252
अहल--नज़रक़ो,
वुसअत--इम्क़ाँ बहुत हैं तंग़ l
ग़र्दूं नहीं ग़िरह हैं,
ये तार--निग़ाहमें ll
अमीर मीनाई

9253
अहल--नियाज़--दहरसे,
अर्ज़--नियाज़--दिल...
इस वुसअत--नज़रने,
क़िया दर--दर मुझे.......
                      अफ़क़र मोहानी

9254
तिरी हद्द--नज़र,
शाहिद-फ़रोशीक़ी दुक़ाँ तक़ हैं ;
मिरी पर्वाज़क़ी वुसअत,
मक़ाँसे ला-मक़ाँ तक़ हैं ll
मयक़श अक़बराबादी

9255
मज़नूँक़ी तरह वहशी,
सहरा--ज़ुनूँ नहीं...
हैं वुसअत--मशरब,
सेती मैदान हमारा.......
                  सिराज़ औरंग़ाबादी

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