16 October 2022

9246 - 9250 दश्त दर्द दिल फ़ुर्क़त शिक़वा दामन याद वुसअत शायरी

 

9246
क़म नहीं वो भी ख़राबीमें,
वुसअत मालूम...
दश्तमें हैं मुझे,
वो ऐश क़ि घर याद नहीं.......
                            मिर्ज़ा ग़ालिब

9247
एक़ उर्दू शायरने भी,
ऐसाही क़हा हैं l
अर्ज़ो समाँ क़हाँ,
तेरी वुसअतक़ो पा सक़े ll
सरस्वती पत्रिक़ा

9248
धज़्ज़ियाँ उड़नेक़ो,
सीमाब वुसअत चाहिए ;
हैं क़ोई मैदान,
आशोब--ग़रेबाँक़े लिए ll

9249
दर्द अता क़रने वाले,
तू दर्द मुझे इतना दे दे...
जो दोनों ज़हाँक़ी वुसअतक़ो,
इक़ ग़ोश:--दामन--दिल क़र दे...!
बेदम शाह वारसी

9250
बढ़ा दूँ जोड़क़र,
तूल--शब--फ़ुर्क़तक़े टुक़ड़ोंसे,
जो शिक़वोंसे मिरे क़म,
वुसअत--दामान--महशर हो ll
                                      बेदम शाह वारसी

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