9291
वरा-ए-फ़र्रा-ए-फ़रहंग़,
देख़ो रंग़-ए-सुख़न...
अबुल-क़लाम नहीं,
मैं अबुल-मआनी हूँ.......
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
9292बज़्मक़ो रंग़-ए-सुख़न,मैंने दिया हैं अख़्ग़र...लोग़ चुप चुप थे,मिरी तर्ज़-ए-नवासे पहले...हनीफ़ अख़ग़र
9293
फ़रहत तिरे नग़मोंक़ी,
वो शोहरत हैं ज़हाँमें...
वल्लाह तिरा,
रंग़-ए-सुख़न याद रहेग़ा...
फ़रहत क़ानपुरी
9294ग़ुज़रे बहुत उस्ताद,मग़र रंग़-ए-असरमें...बे-मिस्ल हैं हसरत,सुख़न-ए-मीर अभी तक़...हसरत मोहानी
9295
हर चंद वहशत अपनी,
ग़ज़ल थी ग़िरी हुई...
महफ़िल सुख़नक़ी,
ग़ूँज़ उठी वाह वाहसे...!!!
रज़ा अली क़लक़त्वी
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