24 October 2022

9291 - 9295 ग़ज़ल महफ़िल बज़्म शोहरत रंग़ उस्ताद हसरत वहशत सुख़न शायरी

 

9291
वरा--फ़र्रा--फ़रहंग़,
देख़ो रंग़--सुख़न...
अबुल-क़लाम नहीं,
मैं अबुल-मआनी हूँ.......
                 अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

9292
बज़्मक़ो रंग़--सुख़न,
मैंने दिया हैं अख़्ग़र...
लोग़ चुप चुप थे,
मिरी तर्ज़--नवासे पहले...
हनीफ़ अख़ग़र

9293
फ़रहत तिरे नग़मोंक़ी,
वो शोहरत हैं ज़हाँमें...
वल्लाह तिरा,
रंग़--सुख़न याद रहेग़ा...
                     फ़रहत क़ानपुरी

9294
ग़ुज़रे बहुत उस्ताद,
मग़र रंग़--असरमें...
बे-मिस्ल हैं हसरत,
सुख़न--मीर अभी तक़...
हसरत मोहानी

9295
हर चंद वहशत अपनी,
ग़ज़ल थी ग़िरी हुई...
महफ़िल सुख़नक़ी,
ग़ूँज़ उठी वाह वाहसे...!!!
                   रज़ा अली क़लक़त्वी

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