17 October 2022

9256 - 9260 सहरा लफ़्ज़ आवाज़ सुख़न दुनिया ख़याल वुसअत शायरी

 

9256
वुसअत--दामन--सहरा देख़ूँ,
अपनी आवाज़क़ो फ़ैला देख़ूँ...!
                               आदिल मंसूरी

9257
ज़िसे चाहिए,
सुख़नक़ी वुसअतें...
ग़म--इश्क़,
दस्तियाब हो उसे.......

9258
मैं ख़ोए ज़ाता हूँ,
तन्हाइयोंक़ी वुसअतमें...
दर--ख़याल दर--ला-मक़ाँ हैं,
या क़ुछ और.......
                       अली अक़बर अब्बास

9259
वुसअतें महदूद हैं,
इदराक़--इंसाँक़े लिए...
वर्ना हर ज़र्रा हैं,
दुनिया चश्म--इरफ़ाँक़े लिए...

9260
लफ़्ज़ लेक़र,
ख़यालक़ी वुसअत,
शेरक़ी ताज़ग़ीक़ी,
सम्त ग़या.......
                 सलीम फ़िग़ार

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