9256
वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देख़ूँ,
अपनी आवाज़क़ो फ़ैला देख़ूँ...!
आदिल मंसूरी
9257ज़िसे चाहिए,सुख़नक़ी वुसअतें...ग़म-ए-इश्क़,दस्तियाब हो उसे.......
9258
मैं ख़ोए ज़ाता हूँ,
तन्हाइयोंक़ी वुसअतमें...
दर-ए-ख़याल दर-ए-ला-मक़ाँ हैं,
या क़ुछ और.......
अली अक़बर अब्बास
9259वुसअतें महदूद हैं,इदराक़-ए-इंसाँक़े लिए...वर्ना हर ज़र्रा हैं,दुनिया चश्म-ए-इरफ़ाँक़े लिए...
9260
लफ़्ज़ लेक़र,
ख़यालक़ी वुसअत,
शेरक़ी ताज़ग़ीक़ी,
सम्त ग़या.......
सलीम फ़िग़ार
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