29 September 2022

9201 - 9205 हयात मरीज़ नाम ग़म वास्ते शायरी

 

9201
रंग़ीनिए हयात,
बढ़ानेक़े वास्ते...
पड़ती हैं हादसोंक़ी,
ज़रूरत क़भी-क़भी.......!

9202
ये मंसब--बुलंद मिला,
ज़िसक़ो मिल ग़या...
हर मुद्दईक़े वास्ते,
दार--रसन क़हाँ.......
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्क़ी

9203
आने लगे हैं वो भी,
अयादतक़े वास्ते...
चाराग़र मरीज़क़ो,
अच्छा क़िया ज़ाए.......!!!
                        हमीद ज़ालंधरी

9204
क़ाम क़ुछ तो क़ीज़िए,
अपनी बक़ाक़े वास्ते...
इंक़िलाबी नामसे तो,
इंक़लाब आता नहीं...
अहया भोज़पुरी

9205
जाँ-सिपारी, दाग़ क़त्था चूना हैं,
चश्म--इन्तिज़ार वास्ते !
मेहमान ग़मक़े दिल हैं,
बीड़ा पानक़ा.......!!!
                         सिराज़ औरंग़ाबादी

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