20 September 2022

9156 - 9160 ज़मीं क़ैद ज़बाँ मेहरबाँ खंडर सुपुर्दग़ी ख़ुश लफ़्ज़ वास्ते शायरी

 

9156
ये सब माह--अंज़ुम,
मिरे वास्ते हैं l
मग़र इस ज़मींपर,
मैं क़ैद--ज़हाँ हूँ ll
                     राग़िब देहलवी

9157
ये दलील--ख़ुश-दिली हैं,
मिरे वास्ते नहीं हैं...
वो दहन क़ि हैं शग़ुफ़्ता,
वो ज़बीं क़ि हैं क़ुशादा.......
मोहम्मद दीन तासीर

9158
वहीं लफ़्ज़ हैं,
दुर्र--बे-बहा मिरे वास्ते ;
ज़िन्हें छू ग़ई हो,
तिरी ज़बाँ मिरे मेहरबाँ ll
                              बुशरा हाश्मी

9159
सुपुर्दग़ीमें भी इक़,
रम्ज़--ख़ुद-निग़ह-दारी...
वो मेरे दिलसे,
मिरे वास्ते नहीं ग़ुज़रे.......
मज़ीद अमज़द शेर

9160
मिरे वास्ते,
ज़ाने क़्या लाएग़ी...!
ग़ई हैं हवा,
इक़ खंडरक़ी तरफ़.......!!!
                   राजेन्द्र मनचंदा बानी

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