9156
ये सब माह-ओ-अंज़ुम,
मिरे वास्ते हैं l
मग़र इस ज़मींपर,
मैं क़ैद-ए-ज़हाँ हूँ ll
राग़िब देहलवी
9157ये दलील-ए-ख़ुश-दिली हैं,मिरे वास्ते नहीं हैं...वो दहन क़ि हैं शग़ुफ़्ता,वो ज़बीं क़ि हैं क़ुशादा.......मोहम्मद दीन तासीर
9158
वहीं लफ़्ज़ हैं,
दुर्र-ए-बे-बहा मिरे वास्ते ;
ज़िन्हें छू ग़ई हो,
तिरी ज़बाँ मिरे मेहरबाँ ll
बुशरा हाश्मी
9159सुपुर्दग़ीमें भी इक़,रम्ज़-ए-ख़ुद-निग़ह-दारी...वो मेरे दिलसे,मिरे वास्ते नहीं ग़ुज़रे.......मज़ीद अमज़द शेर
9160
मिरे वास्ते,
ज़ाने क़्या लाएग़ी...!
ग़ई हैं हवा,
इक़ खंडरक़ी तरफ़.......!!!
राजेन्द्र मनचंदा बानी
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