22 September 2022

9166 - 9170 लहू आग़ रात आँख़ें ख़्वाब शख़्स बुराई हासिल वास्ते शायरी

 

9166
रातोंक़ो ज़ाग़ते हैं,
इसी वास्ते क़ि ख़्वाब...
देख़ेग़ा बंद आँख़ें तो,
फ़िर लौट ज़ाएग़ा.......
                   अहमद शहरयार

9167
अब क़िसी,
औरक़े वास्ते हीं सहीं...
पर अदाए उनक़ी,
आज़ भी वैसी हीं हैं.......

9168
क़्या इसी वास्ते,
सींचा था लहूसे अपने...
ज़ब सँवर ज़ाए चम,
आग़ लग़ा दी ज़ाए.......
             अली अहमद ज़लीली

9169
क़ुर्बतें हदसे ग़ुज़र ज़ाएँ,
तो ग़म मिलते हैं...
हम इसी वास्ते,
हर शख़्ससे क़म मिलते हैं...

9170
बुराई या भलाई ग़ो हैं,
अपने वास्ते लेक़िन...
क़िसीक़ो क़्यूँ क़हें हम बद,
क़ि बद-ग़ोईसे क़्या हासिल.......
                          बहादुर शाह ज़फ़र

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