1 September 2022

9066 - 9070 बुरा भला वास्ता सहरा क़िस्मत ज़ल्वे आवारग़ी राहें शायरी

 

9066
बुरा भला वास्ता बहर-तौर,
उससे क़ुछ देर तो रहा हैं...
क़हीं सर--राह सामना हो तो,
इतनी शिद्दतसे मुँह मोड़ूँ.......
                   ख़ालिद इक़बाल यासिर

9067
फ़लक़ने क़ूचा--मक़्सदक़ी,
बंद क़ी राहें ;
भला बताओ क़ि,
क़िस्मत मिरी क़िधरसे फ़िरे ?
मुनीर शिक़ोहाबादी

9068
सुनते हैं क़ि क़ाँटेसे,
ग़ुलतक़ हैं राहमें लाख़ों वीराने...
क़हता हैं मग़र ये अज़्म--ज़ुनूँ,
सहरासे ग़ुलिस्ताँ दूर नहीं.......
                          मज़रूह सुल्तानपुरी

9069
लाख़ राहें थीं,
वहशतोंक़े लिए...
क़िस लिए बंद,
राह--सहरा थी...
हफ़ीज़ ताईब

9070
लाख़ राहें थीं,
लाख़ ज़ल्वे थे...
अहद--आवारग़ीमें,
क़्या क़ुछ था.......!!!
                 नासिर क़ाज़मी

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