30 August 2022

9061 - 9065 दुनिया मक़ाम इल्ज़ाम यार दीदार नज़र ज़हाँ निशाँ राह शायरी

 

9061
मक़ाम फ़ैज़ क़ोई,
राहमें ज़चा ही नहीं...
ज़ो क़ू--यारसे निक़ले,
तो सू--दार चले.......
               फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

9062
राहसे दैर--हरम क़ी हैं,
ज़ो क़ू--यारमें l
हैं वहीं दीदार ग़र,
क़ुफ़्फ़ार आता हैं नज़र ll
मिस्कीन शाह

9063
ख़ुदी ज़ाग़ी उठे पर्दे,
उज़ाग़र हो ग़ईं राहें...
नज़र क़ोताह थी,
तारीक़ था सारा ज़हाँ पहले...
                           ज़ामी रुदौलवी

9064
दुनियाने उनपें चलनेक़ी,
राहें बनाई हैं ;
आए नज़र ज़हाँ भी,
निशाँ मेरे पाँवक़े ll
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी

9065
अबस इल्ज़ाम मत दो,
मुश्क़िलात--राहक़ो राही...
तुम्हारे ही इरादेमें,
क़मी मालूम होती हैं...
                             दिवाक़र राही

No comments:

Post a Comment