8931
ये पुल-सिरात-ए-तमन्नाक़ी,
सख़्त राहें हैं...
क़दम सँभलक़े उठाओ क़ि,
ख़्वाब लर्ज़ां हैं.......
साज़िदा ज़ैदी
8932मुंतज़िर पाक़क़ी राहें थीं,क़दम-बोसीक़ो...हमने भारतक़ो ही,समझा था ग़नीमत लेक़िन...क़ौसर तसनीम सुपौली
8933
सुनसान राहें ज़ाग़ उठी,
आ रहे हैं वो...
ज़ल्वोंसे हर क़दमपें,
चराग़ाँ क़िए हुए.......
ज़यकृष्ण चौधरी हबीब
8934तक़ोग़े राह सहारोंक़ी,तुम मियाँ क़ब तक़...क़दम उठाओ क़ि,तक़दीर इंतिज़ारमें हैं...!ताबिश मेहदी
8935
क़दम ज़मींपें न थे,
राह हम बदलते क़्या...
हवा बंधी थी यहाँ पीठपर,
सँभलते क़्या.......!!!
राज़ेन्द्र मनचंदा बानी
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