1 August 2022

8931 - 8935 क़दम ख़्वाब तमन्ना इंतिज़ार ज़मीं हवा ज़ल्वा राहें शायरी

 

8931
ये पुल-सिरात--तमन्नाक़ी,
सख़्त राहें हैं...
क़दम सँभलक़े उठाओ क़ि,
ख़्वाब लर्ज़ां हैं.......
                           साज़िदा ज़ैदी

8932
मुंतज़िर पाक़क़ी राहें थीं,
क़दम-बोसीक़ो...
हमने भारतक़ो ही,
समझा था ग़नीमत लेक़िन...
क़ौसर तसनीम सुपौली

8933
सुनसान राहें ज़ाग़ उठी,
रहे हैं वो...
ज़ल्वोंसे हर क़दमपें,
चराग़ाँ क़िए हुए.......
               ज़यकृष्ण चौधरी हबीब

8934
तक़ोग़े राह सहारोंक़ी,
तुम मियाँ क़ब तक़...
क़दम उठाओ क़ि,
तक़दीर इंतिज़ारमें हैं...!
ताबिश मेहदी

8935
क़दम ज़मींपें थे,
राह हम बदलते क़्या...
हवा बंधी थी यहाँ पीठपर,
सँभलते क़्या.......!!!
                 राज़ेन्द्र मनचंदा बानी

No comments:

Post a Comment