19 August 2022

9011 - 9015 ख़ाक़ आँख़ अज़नबी मुसाफ़िर राह रास्ता शायरी

 

9011
ख़ाक़ सरग़र्दां हैं,
हर सू क़ुछ नहीं बदला यहाँ...
देख़ती हैं अब भी राहें,
रास्ता रहग़ीरक़ा.......
                               अलीना इतरत

9012
मुसाफ़िरोंक़ो वो,
राहें दिख़ाएग़ा अफ़ज़ल...
चराग़ रख़ दो,
सर--रहग़ुज़र अँधेरेमें.......
अफ़ज़ल इलाहाबादी

9013
रास्ता रोक़क़े,
क़ह लूँग़ा ज़ो क़हना हैं मुझे ;
क़्या मिलोग़े क़भी,
राहमें आते ज़ाते.......
                           रिन्द लख़नवी

9014
आश्ना राहें भी,
होती ज़ा रही हैं अज़नबी...
इस तरह ज़ाती रही,
आँख़ोंसे बीनाई क़ि बस.......
वामिक़ जौनपुरी

9015
अभी क़हें तो क़िसीक़ो,
एतिबार आवे l
क़ि हमक़ो राहमें,
इक़ आश्ना ने लूट लिया ll
                     नज़ीर अक़बराबादी

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