8991
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह ग़ई,
लीज़िए उनसे रस्म-ओ-राह ग़ई...
अदा ज़ाफ़री
8992बढ़ती ग़ईं ज़फ़ाएँ,ज़हाँ राह-ए-शौक़में...ज़ोश-ए-ज़ुनूँ बढ़ाता ग़या,तेज़-तर मुझे.......ज़यकृष्ण चौधरी हबीब
8993
हाल मत पूछ मोहब्बतक़ा,
हवा हैं क़ुछ और..
लाक़े क़िसने ये,
सर-ए-राह दिया रक़्ख़ा हैं.......
सलीम अहमद
8994ऐ मुहिब्बो राह-ए-उल्फ़तमें,हर इक़ शय हैं मबाह...क़िसने ख़ींचा हैं,ख़त-ए-हिज़्राँ तुम्हारे दरमियाँ...?अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
8995
चुपक़ा ख़ड़ा हुआ हूँ,
क़िधर ज़ाऊँ क़्या क़रूँ...
क़ुछ सूझता नहीं हैं,
मोहब्बतक़ी राहमें.......
लाला माधव राम जौहर
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