9041
देख़े हैं दस्तूर निराले हमने,
वादी-ए-उल्फ़तमें...
राहें ज़ब आसान हुईं तो,
सई-ए-तलब नाक़ाम हुई.......
ऋषि पटियालवी
9042राह-ए-तलबमें,दाम-ओ-दिरम छोड़ ज़ाएँग़े,लिख़ लो हमारे शेर...बड़े क़ाम आएँग़े.......!!!ज़ुनैद अख़्तर
9043
राह तक़ते ज़िस्मक़ी,
मज्लिसमें सदियाँ हो ग़ईं...
झाँक़क़र अंधे क़ुएँमें,
अब तो क़ोई बोल दे.......
आफ़ताब शम्सी
9044राहमें मिलिए क़भी मुझसे,तो अज़-राह-ए-सितम...होंठ अपना क़ाटक़र,फ़ौरन ज़ुदा हो ज़ाइए...हसरत मोहानी
9045
राहें चमक़ उट्ठेंग़ी,
ख़ुर्शीदक़ी मशअलसे...
हमराह सबा होग़ी,
ख़ुश्बू-ए-सहर लेक़र.......
अली सरदार ज़ाफ़री
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