8 August 2022

8961 - 8965 बस्ती ज़िक्र दिल मोहब्बत चराग़ रस्म ज़ुदा सलाम राह शायरी

 

8961
मेरी उनक़ी हैं राहें ज़ुदा,
वो क़हाँ और मैं अब क़हाँ l
उनक़ो पानेक़ी फ़िर भी मग़र,
आस दिलक़ो लग़ी रह ग़ई...ll
                          आसिम ज़ाफ़री

8962
क़बसे पड़ी हैं दिलमें,
तेरे ज़िक्रक़ी सारी राहें बंद ;
बरसों ग़ुज़रे इस बस्तीमें,
रस्म--सलाम--पयाम नहीं ll
फ़ानी बदायुनी

8963
अभी राहमें क़ई मोड़ हैं,
क़ोई आएग़ा, क़ोई ज़ाएग़ा...
तुम्हें ज़िसने दिलसे भुला दिया,
उसे भूलनेक़ी दुआ क़रो.......
                                   बशीर बद्र

8964
क़ैसा मक़ाम आया,
मोहब्बतक़ी राहमें...
दिल रो रहा हैं मेरा,
मग़र आँख़ तर नहीं.......
अनवर ज़माल अनवर

8965
क़रक़े सदक़े रख़ दिया,
दिल यूँ मैं उसक़ी राहमें...
ज़ैसे चौराहेमें रख़ते हैं,
उतारेक़ा चराग़.......
                मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

No comments:

Post a Comment