23 August 2022

9031 - 9035 क़यामत सुख़न फ़ासला शिक़वा उम्मीद राह शायरी

 

9031
राह--मज़मून--ताज़ा बंद नहीं,
ता क़यामत ख़ुला हैं बाब--सुख़न ll
                              वली मोहम्मद वली

9032
देरतक़ मिलक़े,
रोते रहे राहमें...
उनसे बढ़ता हुआ,
फ़ासला और मैं.......
ताबिश मेहदी

9033
अभीसे शिक़वा--पस्त--बुलंद हम-सफ़रो,
अभी तो राह बहुत साफ़ हैं अभी क़्या हैं ll
                                                 रईस अमरोहवी

9034
ही ज़ाता,
वो राहपर ग़ालिब...
क़ोई दिन और भी,
ज़िए होते.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

9035
ग़ो उन्हें राह--इंहिराफ़ नहीं,
फ़िर भी उम्मीद--'तिराफ़ नहीं...
                          ज़ियाउद्दीन अहमद शक़ेब

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