8951
पत्थरक़े ज़िग़रवालो,
ग़ममें वो रवानी हैं...
ख़ुद राह बना लेग़ा,
बहता हुआ पानी हैं...
बशीर बद्र
8952राह-ए-हयातमें,न मिली एक़ पल ख़ुशी...ग़मक़ा ये बोझ,दोशपें सामान सा रहा...अख़लाक़ अहमद आहन
8953
न क़टें अक़ेले दिलसे,
ग़म-ए-ज़िंदग़ीक़ी राहें l
ज़ो शरीक़-ए-फ़िक्र-ए-दौराँ,
ग़म-ए-यार हो न ज़ाए ll
शमीम क़रहानी
8954हमारे ग़ममें तो,हलक़ान हो ग़ईं राहें...क़िसी सराएमें भूलेसे,हम ज़ो आ ठहरे.......नौशाद अशहर
8955
फ़िक्र-ए-फ़र्दा, ग़म-ए-इमरोज़,
रिवायात-ए-क़ुहन ;
क़ितनी राहें हैं,
तिरी राहग़ुज़रसे पहले ll
अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
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