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6 August 2022

8951 - 8955 पत्थर ज़िंदग़ी ग़म ख़ुशी फ़िक्र राहग़ुज़र राहें शायरी

 

8951
पत्थरक़े ज़िग़रवालो,
ग़ममें वो रवानी हैं...
ख़ुद राह बना लेग़ा,
बहता हुआ पानी हैं...
                     बशीर बद्र

8952
राह--हयातमें,
मिली एक़ पल ख़ुशी...
ग़मक़ा ये बोझ,
दोशपें सामान सा रहा...
अख़लाक़ अहमद आहन

8953
क़टें अक़ेले दिलसे,
ग़म--ज़िंदग़ीक़ी राहें l
ज़ो शरीक़--फ़िक्र--दौराँ,
ग़म--यार हो ज़ाए ll
                     शमीम क़रहानी

8954
हमारे ग़ममें तो,
हलक़ान हो ग़ईं राहें...
क़िसी सराएमें भूलेसे,
हम ज़ो ठहरे.......
नौशाद अशहर

8955
फ़िक्र--फ़र्दा, ग़म--इमरोज़,
रिवायात--क़ुहन ;
क़ितनी राहें हैं,
तिरी राहग़ुज़रसे पहले ll
                 अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ