9 August 2022

8966 - 8970 दिल ख़्याल हौसला मक़ाम पलक़ ज़ुल्फ़ ज़ख़्म राह शायरी

 

8966
राहें निक़ालता हैं,
यही सोज़--साज़क़ी...
पहलूमें दिल हो तो,
क़ोई हौसला हो.......
                 अब्दुल हलीम शरर

8967
ये सब ग़लत हैं क़ि,
होती हैं दिलक़ो दिलसे राह...
क़िसीक़ो ख़ाक़,
क़िसीक़ा ख़्याल होता हैं.......?
लाला माधव राम जौहर

8968
दिल--सद-चाक़ मिरा,
राह यहाँ क़ब पाए ;
क़ूचा--ज़ुल्फ़में फ़िरता हैं,
तिरे शाना ख़राब ll
                 शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

8969
दिलमें रख़ ज़ख़्म--नवा,
राहमें क़ाम आएग़ा...
दश्त--बे-सम्तमें,
इक़ हू क़ा मक़ाम आएग़ा...
ज़फ़र गौरी

8970
दिलमें राह--चश्म--हैराँ सीं,
ख़ुल रहे हैं मिरी पलक़क़े पाट.......
                               सिराज़ औरंग़ाबादी

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