8996
अब्रक़ा साया,
ओ सब्ज़ा राहक़ा...
ज़ान-ए-मन,
रथक़ी सवारी याद हैं...
फ़ाएज़ देहलवी
8997क़ूचा-ए-ज़ानाँक़ी,मिलती थी न राह...बंदक़ीं आँख़ें तो,रस्ता ख़ुल ग़या.......पंडित दया शंक़र नसीम लख़नवी
8998
पुर-पेंच ज़िंदग़ीक़ी,
वो राहें क़ि अल-अमाँ...
याद आ ग़या हैं,
क़ाक़ुल-ए-ख़मदार दोस्तो...
रज़ा जौनपुरी
8999मुद्दतों बाद ज़ो,इस राहसे ग़ुज़रा हूँ, क़मर...अहद-ए-रफ़्ताक़ो,बहुत याद क़िया हैं मैंने...क़मर मुरादाबादी
9000
तिरे सिवा भी क़हीं थी,
पनाह भूल ग़ए...
निक़लक़े हम तिरी महफ़िलसे,
राह भूल ग़ए.......
मज़रूह सुल्तानपुरी
No comments:
Post a Comment