16 August 2022

8996 - 9000 ज़िंदग़ी साया याद पनाह महफ़िल रफ़्ता आँख़ें राह शायरी

 

8996
अब्रक़ा साया,
सब्ज़ा राहक़ा...
ज़ान--मन,
रथक़ी सवारी याद हैं...
                    फ़ाएज़ देहलवी

8997
क़ूचा--ज़ानाँक़ी,
मिलती थी राह...
बंदक़ीं आँख़ें तो,
रस्ता ख़ुल ग़या.......
पंडित दया शंक़र नसीम लख़नवी

8998
पुर-पेंच ज़िंदग़ीक़ी,
वो राहें क़ि अल-अमाँ...
याद ग़या हैं,
क़ाक़ुल--ख़मदार दोस्तो...
                          रज़ा जौनपुरी

8999
मुद्दतों बाद ज़ो,
इस राहसे ग़ुज़रा हूँ, क़मर...
अहद--रफ़्ताक़ो,
बहुत याद क़िया हैं मैंने...
क़मर मुरादाबादी

9000
तिरे सिवा भी क़हीं थी,
पनाह भूल ग़ए...
निक़लक़े हम तिरी महफ़िलसे,
राह भूल ग़ए.......
                        मज़रूह सुल्तानपुरी

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