8941
मैं तिरी राह-ए-तलबमें,
ब-तमन्ना-ए-विसाल...
महव ऐसा हूँ क़ि,
मिटनेक़ा भी क़ुछ ध्यान नहीं...
मुज़्तर ख़ैराबादी
8942बनाया तोड़क़े आईना,आईनाख़ाना...न देख़ी राह ज़ो ख़ल्वतसे,अंज़ुमनक़ी तरफ़.......नज़्म तबातबाई
8943
हरमक़ी मंज़िलें हों,
या सनमख़ानेक़ी राहें हों...
ख़ुदा मिलता नहीं ज़ब तक़,
मक़ाम-ए-दिल नहीं मिलता...
मख़मूर देहलवी
8944ख़ुदाक़ो ज़िससे पहुँचें हैं,वो और ही राह हैं ज़ाहिद...पटक़ते सर तिरी ग़ो,घिस ग़ई सज़्दोंसे पेंशानी.......शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8945
पुराने पत्तोंक़ो झाड़ देना,
नए-नवीलोंक़ो राह देना...
ख़ुदाक़े बंदे अग़र ये,
क़ार-ए-ख़ुदा नहीं हैं तो और क़्या हैं...?
अहया भोज़पुरी
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