21 August 2022

9021 - 9025 घड़ी डर ख़ाक़ सुलूक़ शान पुक़ार राह शायरी

 

9021
क़्या हो ग़र क़ोई घड़ीयाँ भी,
क़रम फ़रमाओ...
आप इस राहसे,
आख़िर तो ग़ुज़र क़रते हैं...
                        मीर मोहम्मदी बेदार

9022
वो राहें ज़िनसे अभी तक़,
नहीं ग़ुज़र मेरा...
लग़ा हुआ हैं,
इन्हीं रास्तोंक़ो डर मेरा...
मुस्लिम सलीम

9023
सुलूक़ और मारिफ़तक़ी,
राहें ख़ुली हैं शौक़त...
सो मैं शरीअतक़े,
मरहलेसे ग़ुज़र रहा हूँ...
                        शौक़त हाशमी

9024
इस राहसे ग़ुज़रे थे,
क़भी अहल--नज़र भी..
इस ख़ाक़क़ो चेहरेपें मिलो,
आँख़में डालो.......
शहज़ाद अहमद

9025
क़िस शानसे चला हैं,
मिरा शहसवार--हुस्न...
फ़ित्ने पुक़ारते हैं,
ज़रा हटक़े राहसे.......
                    ज़लील मानिक़पूरी

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