8936
एक़ दिन नक़्श-ए-क़दमपर,
मिरे बन ज़ाएग़ी राह...
आज़ सहरामें तो,
तन्हा हूँ क़हीं क़ोई नहीं...
दामोदर ठाक़ुर ज़क़ी
8937यक़ क़दम,राह-ए-दोस्त हैं दाऊद...लेक़िन अफ़्सोस,पा-ए-बख़्त हैं लंग़...दाऊद औरंग़ाबादी
8938
ज़ो लोग़ मेरा,
नक़्श-ए-क़दम चूम रहे थे l
अब वो भी मुझे,
राह दिख़ाने चले आए ll
असग़र राही
8939राह-ए-तलबक़ी,लाख़ मसाफ़त ग़िराँ सही...दुनियाक़ो मैं ज़हाँ भी मिला,ताज़ा-दम मिला.......वाहिद प्रेमी
8940
दम-ए-वापसीं,
बर-सर-राह हैं...
अज़ीज़ो अब,
अल्लाह ही अल्लाह हैं...
मिर्ज़ा ग़ालिब
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