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2 August 2022

8936 - 8940 तन्हा नक़्श सहरा तलब क़दम अज़ीज़ राह शायरी

 

8936
एक़ दिन नक़्श--क़दमपर,
मिरे बन ज़ाएग़ी राह...
आज़ सहरामें तो,
तन्हा हूँ क़हीं क़ोई नहीं...
                  दामोदर ठाक़ुर ज़क़ी

8937
यक़ क़दम,
राह--दोस्त हैं दाऊद...
लेक़िन अफ़्सोस,
पा--बख़्त हैं लंग़...
दाऊद औरंग़ाबादी

8938
ज़ो लोग़ मेरा,
नक़्श--क़दम चूम रहे थे l
अब वो भी मुझे,
राह दिख़ाने चले आए ll
                        असग़र राही

8939
राह--तलबक़ी,
लाख़ मसाफ़त ग़िराँ सही...
दुनियाक़ो मैं ज़हाँ भी मिला,
ताज़ा-दम मिला.......
वाहिद प्रेमी

8940
दम--वापसीं,
बर-सर-राह हैं...
अज़ीज़ो अब,
अल्लाह ही अल्लाह हैं...
                        मिर्ज़ा ग़ालिब