8946
ग़ुज़रते ज़ा रहे हैं,
क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक़ ज़ा ;
ग़ुबार-ए-राह तेरे साथ,
चलना चाहता हूँ मैं.......!
असलम महमूद
8947इलाही क़्या,ख़ुले दीदारक़ी राह...उधर दरवाज़े बंद,आँखें इधर बंद.......लाला माधव राम जौहर
8948
इलाही राह-ए-मोहब्बतक़ो,
तय क़रें क़्यूँक़र...
ये रास्ता तो मुसाफ़िरक़े,
साथ चलता हैं.......
अहमद सहारनपुरी
8949क़रता हूँ तवाफ़,अपना तो मिलती हैं नई राह lक़िबला भी हैं,ये ज़ात मिरा क़िबला-नुमा भी llअमीक़ हनफ़ी
8950
हैं राह-ए-आशिक़ी,
तारीक़ और बारीक़ और सुक़ड़ी...
नहीं क़ुछ क़ाम आनेक़ी,
यहाँ ज़ाहिद तिरी लक़ड़ी.......
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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