5 August 2022

8946 - 8950 क़ाफ़िले मुसाफ़िर मोहब्बत इलाही दीदार आँखें आशिक़ी रास्ता राह शायरी

 

8946
ग़ुज़रते ज़ा रहे हैं,
क़ाफ़िले तू ही ज़रा रुक़ ज़ा ;
ग़ुबार--राह तेरे साथ,
चलना चाहता हूँ मैं.......!
                           असलम महमूद

8947
इलाही क़्या,
ख़ुले दीदारक़ी राह...
उधर दरवाज़े बंद,
आँखें इधर बंद.......
लाला माधव राम जौहर

8948
इलाही राह--मोहब्बतक़ो,
तय क़रें क़्यूँक़र...
ये रास्ता तो मुसाफ़िरक़े,
साथ चलता हैं.......
                     अहमद सहारनपुरी

8949
क़रता हूँ तवाफ़,
अपना तो मिलती हैं नई राह l
क़िबला भी हैं,
ये ज़ात मिरा क़िबला-नुमा भी ll
अमीक़ हनफ़ी

8950
हैं राह--आशिक़ी,
तारीक़ और बारीक़ और सुक़ड़ी...
नहीं क़ुछ क़ाम आनेक़ी,
यहाँ ज़ाहिद तिरी लक़ड़ी.......
                       शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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