9091
अक़्लक़ी पर्वर्दा राहें थी,
ज़मीन-ए-संग़लाख़ l
ज़ब ज़ुनूँ हदसे बढ़ता तो,
रास्ता बनता ग़या ll
महमूद राही
9092आनेवाले ज़ानेवाले,हर ज़मानेक़े लिए...आदमी मज़दूर हैं,राहें बनानेक़े लिए...हफ़ीज़ ज़ालंधरी
9093
ये ज़िनक़ी चौक़में,
लाशें पड़ी हैं लावारिस...
यही थे प्यारक़ी,
राहें निक़ालने वाले.......
आफ़ताब नवाब
9094न क़रते मुंक़ता ग़र तुम...मरासिमक़ी हसीं राहें lतो क़ासिद ख़त मिरा,देने रवाना हो ग़या होता llसबीला इनाम सिद्दीक़ी
9095
बद्दुआ अपने लिए क़ी,
तो बहुत थी मैंने...
हाँ मग़र राहमें,
हाइल ज़ो दुआ थी तेरी ll
ज़िया ज़मीर
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