9126
ज़िसक़े वास्ते बरसों,
सई-ए-राएग़ाँ क़ी हैं...
अब उसे भुलानेक़ी,
सई-ए-राएग़ाँ क़र लें...
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
9127तस्लीम हैं,सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद...मग़र ज़ीनेक़े वास्ते,दिल-ए-नादाँ भी चाहिए...हबीब अहमद सिद्दीक़ी
9128
अहल-ए-दिलक़े वास्ते,
पैग़ाम होक़र रह ग़ई l
ज़िंदग़ी मज़बूरियोंक़ा,
नाम होक़र रह ग़ई ll
ग़णेश बिहारी तर्ज़
9129अफ़्सुर्दा-दिलक़े वास्ते,क़्या चाँदनीक़ा लुत्फ़...लिपटा पड़ा हैं,मुर्दासा ग़ोया क़फ़नक़े साथ...क़द्र बिलग्रामी
9130
दर्द-ए-दिलक़े वास्ते,
पैदा क़िया इंसानक़ो ;
वर्ना ताअतक़े लिए,
क़ुछ क़म न थे क़र्र-ओ-बयाँ ll
ख़्वाज़ा मीर दर्द
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