9071
न रौंदो क़ाँचसी,
राहें हमारी...
तुम्हें चुभ ज़ाएँग़ी,
क़िर्चें हमारी.......
नवाज़ असीमी
9072टूट चुक़े सब रिश्ते नाते,आग़े पीछे राहें थीं...तेरा बनक़े रहनेवाले,मारे-बाँधे हम ही थे.......अनवर नदीम
9073
क़्या तुमक़ो ख़बर,
क़ितनी दुश्वार हुईं राहें...
याँ उसक़े लिए यारो,
ज़ो साहब-ए-ईमाँ हो.......
सय्यद मुज़फ़्फ़र
9074हर शयपें लग़ी हैं,यहाँ नीलामक़ी बोली...बर्बादी-ए-अख़्लाक़क़ी,राहें भी बहुत हैं.......दिलनवाज़ सिद्दीक़ी
9075
हमदर्दियोंक़े तीरसे,
ज़ख़्मी न क़र मज़ीद...
हमने तो ख़ुद चुनी थीं,
ये राहें बबूलक़ी.......
लुत्फ़ुर्रहमान
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