10 September 2022

9111 - 9115 हथेली मोहब्बत दीवाने आईना दुश्मन निग़ह वास्ते शायरी

 

9111
क़िस वास्ते लिक्ख़ा हैं,
हथेलीपें मिरा नाम...
मैं हर्फ़--ग़लत हूँ,
तो मिटा क़्यूँ नहीं देते...?
                       हसरत ज़यपुरी

9112
क़िस वास्ते लड़ते हैं,
बहम शैख़--बरहमन...
क़ाबा क़िसीक़ा हैं,
बुत-ख़ाना क़िसीक़ा...!
क़िशन कुमार वक़ार

9113
बाल अपने बढ़ाते हैं,
क़िस वास्ते दीवाने...
क़्या शहर--मोहब्बतमें,
हज्ज़ाम नहीं होता.......!
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9114
मैने क़्या और निग़हसे,
तिरे रुख़क़ो देख़ा...
आईना बीचमें क़िस वास्ते,
दीवार हैं आज़.......?
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9115
मैं क़हता था...
क़ि बहक़ाएँगे तुमक़ो दुश्मन ;
तुमने क़िस वास्ते,
आना मिरे घर छोड़ दिया...?
                           निज़ाम रामपुरी

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