9111
क़िस वास्ते लिक्ख़ा हैं,
हथेलीपें मिरा नाम...
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ,
तो मिटा क़्यूँ नहीं देते...?
हसरत ज़यपुरी
9112क़िस वास्ते लड़ते हैं,बहम शैख़-ओ-बरहमन...क़ाबा न क़िसीक़ा हैं,न बुत-ख़ाना क़िसीक़ा...!क़िशन कुमार वक़ार
9113
बाल अपने बढ़ाते हैं,
क़िस वास्ते दीवाने...
क़्या शहर-ए-मोहब्बतमें,
हज्ज़ाम नहीं होता.......!
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
9114मैने क़्या और निग़हसे,तिरे रुख़क़ो देख़ा...आईना बीचमें क़िस वास्ते,दीवार हैं आज़.......?मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
9115
मैं न क़हता था...
क़ि बहक़ाएँगे तुमक़ो दुश्मन ;
तुमने क़िस वास्ते,
आना मिरे घर छोड़ दिया...?
निज़ाम रामपुरी
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