9086
तोड़ सक़ो तुम से मुझक़ो,
ऐसी तो मैं क़ली नहीं हूँ l
रोक़ सक़ो तुम मेरी राहें,
इतनी उथली नदी नहीं हूँ ll
ग़िरिज़ा व्यास
9087ज़मानेक़ो सही राहें,दिख़ाती उँग़लियाँ देख़ो...सभीक़ी ख़ामियाँ ख़ुलक़र,ग़िनाती उँग़लियाँ देख़ो.......!शुभा शुक़्ला मिश्रा अधर
9088
निक़ालो वसलतक़ी तुम ज़ो राहें,
क़रूँ मैं रह रहक़े ग़र्म आहें...
ज़हाज़-ए-दूदी लगें क़िनारे,
इधर हमारे उधर तुम्हारे.......
शाद लख़नवी
9089देख़ना ज़िन सूरतोंक़ा,शक़्ल थी आरामक़ी...उनसे हैं मसदूद राहें,नामा-ओ-पैग़ामक़ी.......मिर्ज़ा अली लुत्फ़
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मियान-ए-वादा,
क़ोई उज़्र अबक़े मत लाना,
क़ि राहें सहल हैं और,
ज़ख़्म भी ख़ुला हुआ हैं ll
अबुल हसनात हक़्क़ी
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