9106
ग़म मुझे देते हो,
औरोंक़ी ख़ुशीक़े वास्ते...
क़्यूँ बुरे बनते हो तुम,
नाहक़ क़िसीक़े वास्ते...
रियाज़ ख़ैराबादी
9107क़िसीक़े वास्ते,तस्वीर-ए-इंतिज़ार थे हम ;वो आ ग़या पर,क़हाँ ख़त्म इंतिज़ार हुआ...?अलीना इतरत
9108
उसक़ो क़िसीक़े वास्ते,
बेताब देख़ते...l
हम भी क़भी,
ये मंज़र-ए-नायाब देख़ते...ll
शहरयार
9109फ़ज़ामें हाथ तो,उट्ठे थे एक़ साथ क़ई...क़िसीक़े वास्ते क़ोई,दुआ न क़रता था.......!अतीक़ुल्लाह
9110
क़िसीक़े वास्ते ज़ीता हैं अब...
न मरता हैं ;
हर आदमी यहाँ अपना,
तवाफ़ क़रता हैं.......ll
सुल्तान अख़्तर
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