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1 September 2022

9071 - 9075 हमदर्द क़ाँच ज़ख़्मी रिश्ते नीलाम राहें शायरी

 

9071
रौंदो क़ाँचसी,
राहें हमारी...
तुम्हें चुभ ज़ाएँग़ी,
क़िर्चें हमारी.......
                 नवाज़ असीमी

9072
टूट चुक़े सब रिश्ते नाते,
आग़े पीछे राहें थीं...
तेरा बनक़े रहनेवाले,
मारे-बाँधे हम ही थे.......
अनवर नदीम

9073
क़्या तुमक़ो ख़बर,
क़ितनी दुश्वार हुईं राहें...
याँ उसक़े लिए यारो,
ज़ो साहब--ईमाँ हो.......
               सय्यद मुज़फ़्फ़र

9074
हर शयपें लग़ी हैं,
यहाँ नीलामक़ी बोली...
बर्बादी--अख़्लाक़क़ी,
राहें भी बहुत हैं.......
दिलनवाज़ सिद्दीक़ी

9075
हमदर्दियोंक़े तीरसे,
ज़ख़्मी क़र मज़ीद...
हमने तो ख़ुद चुनी थीं,
ये राहें बबूलक़ी.......
                     लुत्फ़ुर्रहमान