3806
प्यार करना सीखा
हैं,
नफरतोंका
कोई ठौर नहीं;
बस तू हीं तू हैं इस
दिलमें,
दूसरा
कोई और नहीं...!
3807
इश्क-मोहब्बतका तो,
कुछ पता नहीं...
बस उनको देखते
हैं तो,
दिलको सुकून मिलता हैं...!
3808
कमालकी फनकारी
हैं,
तुझमें...
वार भी दिलपें,
राज भी दिलपें.......!
3809
चुरा लो बेशक,
मगर ए हसीं;
अश्कोंकी बरसात
भी,
चुरा लो कभी...
3810
लौट आया हूँ
फिर,
शायरोंकी
बस्तीमें...!
अब कहो दिलका दर्द सुनाऊँ,
या तेरी यादोंकी खुशबु फैलाऊँ...!