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27 December 2017

2131 - 2135 प्यार इश्क मोहब्बत शिकवे शिकायत उलझ मुकदमा रिश्ते सरहद दीवार पराये शायरी


2131
शिकवे शिकायतमें,
उलझकर रह गई मोहब्बत अपनी,
समझ नहीं आता इश्क किया था,
या कोई मुकदमा लड रहे थे.......

2132
" टूटकर बिखर जाते हैं...
मिट्टीकी दीवारकी तरह वो;
लोग जो खुदसे ज्यादा...
किसी औरसे मोहब्बत किया करते हैं  "

2133
"इश्क करना हैं किसीसे तो,
बेहद कीजिए,
हदें तो सरहदोंकी होती हैं,
दिलोंकी नहीं ।

2134
सख़्त हाथोंसे भी,
छूट जाती हैं कभी उंगलियाँ...
रिश्ते ज़ोरसे नहीं,
प्यारसे थामे जाते हैं...!

2135
सब कुछ बदला बदला था,
जब बरसो बाद मिले;
हाथ भी न थाम सके वो,
इतने परायेसे लगे . . . ।