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27 July 2016

438 प्यार ज़िंदगी ज़माना मोड़ संभल सिमट बिखर ख़रीद नज़र लफ्ज शायरी


438

Lafz, Words

कभी संभले तो कभी बिखरते नज़र आये हम,
ज़िंदगीके हर मोड़पर ख़ुदमें सिमटते आये हम...
यूँ तो ज़माना कभी ख़रीद ही नहीं सकता मुझे,
मगर प्यारके दो लफ्जोंसे सदा बिकते आये हम !!!

Sometimes I am Stable and sometimes Dispersed,
On the every turn I compromised myself...
Nobody can purchase me in this Life,
Though being sold out with the two lovable words !!!